फ़िर जीना सीख रहे हैं।
तालीम हाँसिल करके भी
इल्म अपना झूठा ही रहा
बारिशों में भीग कर भी
ज़हन अपना सूखा ही रहा
पलटते पलटते पन्नों को
न जाने क्या ढूँढ़ते रहे
घिसते घिसते जूतों को
न जाने कहाँ बिखरते रहे
अब देख रहे हैं दुनिया को
और नए तजुर्बे ले रहे हैं
इस बार मुक़म्मल होने को
हम फिर से जीना सीख रहे हैं।
© Tanha Musafir
इल्म अपना झूठा ही रहा
बारिशों में भीग कर भी
ज़हन अपना सूखा ही रहा
पलटते पलटते पन्नों को
न जाने क्या ढूँढ़ते रहे
घिसते घिसते जूतों को
न जाने कहाँ बिखरते रहे
अब देख रहे हैं दुनिया को
और नए तजुर्बे ले रहे हैं
इस बार मुक़म्मल होने को
हम फिर से जीना सीख रहे हैं।
© Tanha Musafir