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जीवन एक डोर
पतंग की डोर-सी ये जिंदगी
ना जाने कब हमे कहां ले जाती है
कभी मजबूती से आकाश में उड़ती हुई
हिम्मत और खुशी देती है।
तो कभी हवा के बहाव में इस कदर बहती है,
कि डोर को अपने संग लिए जाती है
कभी तो इतनी तेज़ उड़ती है, कि बस अभी पतंग कहीं दूर चली जाएगी और रह जाएगी तो सिर्फ वो टूटी हुई डोर जो शायद फिर नई कहानी लिखेगी
और साथ निभाएगी किसी नई पतंग का
फिर वही जीवन की मुश्किलें
और गिरना संभलना ।
क्या यही है जीवन?
जिसमे हम सब एक पतंग है और किसी ना किसी डोर से जुड़े हैं
जो डोर कभी भी कहीं भी हमे अकेला
छोड़ देती है खुद के बहाव में जीने के लिए।
कुछ खुदकिस्मत होती हैं
जो किसी की छत पर जा गिरती हैं और बंध जाती हैं एक नई डोर में, जीवन के नए सफ़र की तरह।
पर कुछ कहीं दूर कहीं अटक जाती हैं और बस इंतेज़ार करती हैं किसी के आने का एक नए सफर के लिए।
और कुछ वहीं रह जाती हैं , बस बारिश , हवा ,आंधी को झेलने के लिए
जीवन में कठिनाइयों की तरह।

पर ये सफ़र यूं ही चलता रहता है
पतंग का डोर से नाता जीवन में आशा की तरह बस यूं ही बना रहता है।

© Neha Bharti
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