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हम -तुम

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तुम हो चारदीवारी के पंछी
अपनी फितरत खुला आसमाँ,
तुम हवा में भी किले बनाते
हम कागज़ों में भी जाहिल हैं।

कहाँ बड़बोले तुम सदा से
और हम ठहरे मोहर-ए-सुकूत,
ऐसा बेमेल सा ये मेल है देखो
निभना - निभाना तो मुश्किल है ।
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