...

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चंद मुक्ते
बेशक तुम्हें हम पा ना सके
दिल में तुम्हें तो बिठाया है
चाहे तुम अपना ना कहो
तुमको नहीं माना पराया है

उठा लेती है आंखें दर्द पूरा
लगा देती है अश्कों की झड़ी
बेमौत ही मर जाते हैं इश्क में
यारों घड़ी दर घड़ी

तुम्हें अपना बनाने की जद्दोजहद में
कितने अपने पराए हो गए
तुम भी किसी और की हो गई
हम भी किसी और के हमसाए हो गए

ये हकीकत है फरेबी दुनिया की यारों
जिसकी तलाश होती वो मिलती नहीं
कितने ख्वाब हम सजाया करते हैं
इन्हें हकीकत की जमीं मिलती नहीं


कुछ खुशी, कुछ दर्द कुछ आंसू है
जैसी भी है जिंदगी मेरी धांसू है


तन्हा दिल है आकर इसको देख भी जाओ
बेकरारी को दिल की कुछ करार दे भी जाओ
ये जिंदगी तेरे बगैर गुजारनी अच्छी नहीं लगती
मेरे गुलशन की हर कलियों को बहार दे भी जाओ


© शब्द सारथी