...

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ग़ज़ल
हमारे साथ में है एक रहबर ख़ैरियत से
मगर फिर भी नहीं है अपना लश्कर ख़ैरियत से

लिखा मैंने उसे जो ख़त सरासर ख़ैरियत से
दुआ है बस पहुँच जाए कबूतर ख़ैरियत से

ये बाक़ी दिन महीने भी गुज़र जायेंगे...