तुम्हें नमन करते हैं
वाह क्या समय आया है
जिनको करते थे तुम ज़लील
आज उनके ही भरोसे चल रहा जग सारा है ,
याद करो ..... हां याद करो
बोला करते थे तुम उसे दिन - रात ....
क्या मामूली नर्स बनना ही तुम्हारा सपना था ?
सपने भी तुम्हारे तुम जैसे ही छोटे हैं ,
डॉक्टर भी तो बन सकती थी ..... ओह ! पर तुम पढ़ती ही कहा थी ?
सुन कर ये सब वो कभी कुछ भी ना कहती थी ,
बस होठों पे उसके रहती हमेशा एक सी हसी थी .....
आज जब पूरा देश तबाह हैं
तब वो भी कोई खुश नहीं ,
पर उसे तसल्ली है इस बात की ,
कि नहीं रहना पड़ेगा उसे हाथ पे हाथ धरे
कर सकती हैं कम से कम देखभाल वो उन लोगों की ,
जो जूझ रहे ज़िंदगी और मौत के बीच
अपने शरीर को शरीर नहीं समझ रहे ,
और खुद के परिवार को मानो भूल ही चले
इतना बड़ा बलिदान क्या तुम दे दोगे ???
और क्या कर पाओगे किसी अनजान की निः स्वार्थ भाव से सेवा ,
हां माना उसका ये कर्तव्य है
पर बताओ ना मुझे ज़रा कि इस महामारी में कौन अपने कर्तव्य के प्रति सचेत हैं ?
तो आगे से उनके खिलाफ़ कुछ कहने से पहले सौ बार सोचना
और याद रखना कि कोई काम बड़ा या छोटा नहीं होता ,
डॉक्टर और नर्स की कभी तुलना मत करना
क्यूंकि अगर शिक्षक ना हो तो प्रधानाचार्य का क्या काम ,
ठीक उसी तरह अगर नर्स ना हो तो डॉक्टरों का क्या होगा हाल ?
मेरे नज़र में नर्स डॉक्टरों से कभी कम ना थीं
पर आज मैं आपलोगों को सुबूत देकर पूरे गर्व से कह सकती हूं कि
कोरोना के इस महामारी में नर्स भी कोई हमारे सैनिक से कम नहीं हैं ।
Smriti Trivedy
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