मैं ही ख़ुद अपनी कृष्ण बनूंगी
इस जीवन रूपी युद्ध भूमि में,
मैं खुद अपनी प्रतद्वंद्वी हूं.
कभी अपनी प्रतिभा की साथी हूं,
कभी अपने आलस्य की बंदी हूं.
कभी अपनी कर्मभूमि की मैं वो कर्ण अजेय हूं,
कभी अपने आत्मसम्मान पर मिटने वाली मैं ही अपनी कौंतेय...
मैं खुद अपनी प्रतद्वंद्वी हूं.
कभी अपनी प्रतिभा की साथी हूं,
कभी अपने आलस्य की बंदी हूं.
कभी अपनी कर्मभूमि की मैं वो कर्ण अजेय हूं,
कभी अपने आत्मसम्मान पर मिटने वाली मैं ही अपनी कौंतेय...