घर कहाँ है
घर कहाँ है,
यहाँ तो बस
मकाँ ही मकाँ हैं
साथ रहते हैं
कुछ लोग ,मग़र
दूरी सी दरमियाँ है
कुछ अनमने चेहरे
कुछ गूँगे,कुछ बहरे
कोई कुछ कहता नहीं
कोई किसी की सुनता कहाँ है
अबोले ,अनसुने से
लफ्जों की दास्ताँ है
घर कहाँ है,
यहाँ तो बस,
मकाँ ही मकाँ हैं
© बदनाम कलमकार
यहाँ तो बस
मकाँ ही मकाँ हैं
साथ रहते हैं
कुछ लोग ,मग़र
दूरी सी दरमियाँ है
कुछ अनमने चेहरे
कुछ गूँगे,कुछ बहरे
कोई कुछ कहता नहीं
कोई किसी की सुनता कहाँ है
अबोले ,अनसुने से
लफ्जों की दास्ताँ है
घर कहाँ है,
यहाँ तो बस,
मकाँ ही मकाँ हैं
© बदनाम कलमकार