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"दाने से रोटी तक का सफर"
दाने से रोटी तक का है लम्बा सफर निहाली में
उतना ही लो थाली में व्यर्थ ना जाए नाली में
सोचो किसान जलती धूप में कितनी मेहनत करता है
रूखी सूखी खाकर भी वो पेट हमारा भरता है
तरह-तरह के अन्न उपजाता, रहता खुद बदहाली मे
उतना ही लो थाली में व्यर्थ ना जाए नाली में
इक खाता, कोई दो खाता, कोई खा लेता है चार
बच्चे-बूढ़े अमीर-गरीब का अन्न ही तो आधार
खेत में जो सोना उपजाता, जीता खुद कंगाली में
उतना ही लो थाली में, व्यर्थ ना जाए नाली में
बात यह कोई नई नहीं, कहावत बड़ी पुरानी है
पर अब तक भी कहां बताओ बात यह हमने मानी है
जानवरों से सीखें, जो लेते हैं स्वाद जुगाली में
उतना ही लो थाली में व्यर्थ ना जाए नाली में
© GULSHANPALCHAMBA
उतना ही लो थाली में व्यर्थ ना जाए नाली में
सोचो किसान जलती धूप में कितनी मेहनत करता है
रूखी सूखी खाकर भी वो पेट हमारा भरता है
तरह-तरह के अन्न उपजाता, रहता खुद बदहाली मे
उतना ही लो थाली में व्यर्थ ना जाए नाली में
इक खाता, कोई दो खाता, कोई खा लेता है चार
बच्चे-बूढ़े अमीर-गरीब का अन्न ही तो आधार
खेत में जो सोना उपजाता, जीता खुद कंगाली में
उतना ही लो थाली में, व्यर्थ ना जाए नाली में
बात यह कोई नई नहीं, कहावत बड़ी पुरानी है
पर अब तक भी कहां बताओ बात यह हमने मानी है
जानवरों से सीखें, जो लेते हैं स्वाद जुगाली में
उतना ही लो थाली में व्यर्थ ना जाए नाली में
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