...

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//अंदर का शोर//
//अंदर का शोर//

मेरे दिल के अंदर जानें अब ये कैसा शोर है,
जो बनता सदा अब वो ही अहद ख़लिश है!

बेपीर बेइंतेहा सा सैलाब बनकर करता शोर है,
कल्ब को दर्द हरदम देता वो बनकर ख़लिश है!

हर शब रूह को बेचैन करता मुझकों वो शोर है,
चश्म को रूलाता ही बनकर वो एक ख़लिश है!

राह-ए-ज़िस्त में मेरे क़ल्ब के अंदर ये कैसा शोर है,
बज़्म में साथ होकर भी तन्हाई की अहद ख़लिश है!

'शहाबिया' के रूह-ए-दिल के अंदर रहता कैसा शोर है, रहती परेशान सी और उल्फ़त के महरूम की ख़लिश है! - शहाबिया ख़ान


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