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दो परिंदे
1). दुनिया देखने के अरमान से निकले दो परिंदे आसमान में उड़े,
चला तेज हवा का एक झोखा गिरे निचे फिर उठे।
दिखती थी उन्हें अपनी मंजिल सिर्फ पाना मंजिल को ही था,
पर कतरने की हुई कोशिश उनकी वो पूरी लगन के साथ उड़े।।

2). हार मंजूर नहीं थी उन्हें दुनिया के लिए थे अनजाने,
टूट चूका था मनोबल उनका खुद को सहेज फिर उठे।
भरी उड़ान इतनी ऊँची खुद के परछाई को छोड़ा पीछे,
भर गयी थकान शरीर पर हरा कर थकान को फिर उड़े।।

3). बताया सबको ये करने जा रहे हम ये हमारी मंजिल हैं,
सबने रोका सबने डराया खुद को दे भरोसा एक बार उठे।
जान रखा हतेली पर अपने सपने ज्यादा प्यारे थे अपने उन्हें,
तेज आँधियो को चिरते हुए सपनो को अपना बनाने वो उड़े।।

4). नयी थी राह मंजिल थी धूमिल मन में था डर उनके अंजाना सा पर,
खुद पे कर भरोसा ना रुके गिर कर बार -बार उठे।
धुप हो गर्मी हो चाहे हो तूफान कितना ही बड़ा ना क्यों,
कुछ कर जाने की चाह में सपने की ओर एक कदम उड़े।।

5). राह में मुशीबत बहुत आयी चोट अनचाहे लगे गंभीर,
ध्यान ना दिया बातो पर किसी के जब तक ना टूटे ना रुके।
मिली मंजिल बना लिया इतिहास उन्होंने एक नया,
अंतिम सांस तक लड़े सिर्फ वो अपने सपनो के लिए ही उड़े।।

© sanskar goyal