...

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“तोहफ़ा”
सुनो! तुम मुझे क्या दोगे तोहफ़ों में..?
हां! तुम दोगे एक महकता गुलाब
या फिर हो सकता है एक चॉकलेट
या होगा कोई सूट चमकता हुआ
या सुंदर सी कान की बालियां
या पसंद आ जाए रंगबिरंगी चूड़ियां
या दिख जाए बाज़ार में कोई महंगा इत्र
या फिर मेरे पैरों के लिए हो कोई सैंडल...

सुनो! क्या तुम मुझे यही सब दोगे तोहफ़ों में..?
हां! तुम सोचोगे इससे मैं भरमाऊंगी
या कि खुश हो जाऊंगी
सबको जा जा दिखलाऊंगी
तुमपर प्यार बरसाऊंगी
अपने प्यार पर इतराऊंगी
या तुमसे दुगुना इश्क़ जताऊंगी

सुनो! मुझे नहीं चाहिए इनमें से कोई तोहफ़ा
जब भी देना हो मुझे कुछ
अपनी याद में तुम मुझे एक किताब देना
जिसे नित दिन पढ़कर
हर पल तुमसे मिलती जाऊंगी
उस हर पन्ने को प्यार से पलटकर
आंखों में तुमको भरती जाऊंगी
हर पंक्ति हर वाक्य हर शब्द में तुमको पाऊंगी
तुम्हारी दी हुई अनमोल धरोहर
हर दिन सीने से लगाऊंगी
नज़राना ये सबसे छुपाऊंगी
कहानी पर उसकी सबको सुनाऊंगी
सुनो! जब भी देना हो कोई तोहफ़ा
मुझे तुम बस एक किताब ही देना...
© ढलती_साँझ