कृष्ण से प्रश्न
हे गिरिधारी! तुम बधिर हुए क्या,
क्यों न करुण पुकार सुन पाते हो?
आज द्रौपदी स्वयं की लाज बचाती,
क्योंकि माधव, तुम नहीं आते हो।
युग बीते, तुम पर प्रश्न चिह्न है लगा
पर तुम कहाँ अब चक्र उठाते हो!
अरे! जाओ केशव, तुम रास रचाओ,
तुम अब कुरुक्षेत्र से ही घबराते हो।
बोलो क्यों कहें, हम तुम्हें दयानिधि,
जब तुम दया नहीं, दिखलाते हो?
तुम अच्युत हो, यह सुना था हमने,
क्यों नाम से, जग को भरमाते हो?
तुम कर्म करो, यही है धर्म तुम्हारा
यह कह, स्वधर्म तजे तुम जाते हो।
कलियुग है यह, अब कल्कि आएगा,
यह कह, भक्तों से पिंड छुड़ाते हो।
© Shweta Gupta
क्यों न करुण पुकार सुन पाते हो?
आज द्रौपदी स्वयं की लाज बचाती,
क्योंकि माधव, तुम नहीं आते हो।
युग बीते, तुम पर प्रश्न चिह्न है लगा
पर तुम कहाँ अब चक्र उठाते हो!
अरे! जाओ केशव, तुम रास रचाओ,
तुम अब कुरुक्षेत्र से ही घबराते हो।
बोलो क्यों कहें, हम तुम्हें दयानिधि,
जब तुम दया नहीं, दिखलाते हो?
तुम अच्युत हो, यह सुना था हमने,
क्यों नाम से, जग को भरमाते हो?
तुम कर्म करो, यही है धर्म तुम्हारा
यह कह, स्वधर्म तजे तुम जाते हो।
कलियुग है यह, अब कल्कि आएगा,
यह कह, भक्तों से पिंड छुड़ाते हो।
© Shweta Gupta