...

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स्कूल के वो दिन
स्कूल के वो पँखे जिन्हे हम मोड़ दिया करते थे,
याद आती है वो काँच की खिड़कियां जिन्हे हम तोड़ दिया करते थे....

वो पँखे के रेगुलेटर,
वो स्वीटच बोर्ड कै तार....

चार दोस्त थे हम जिगरी और,
बैक बेंच था अपना यार....
टीचर्स के चेयर पर,
वो चेइंग गम के थूक....

अक्सर खा लिया करते थे हम टिफ़िन,
जब भी हमें लगती थी भूख....

टॉयलेट कै बहाने वो पुरे स्कूल की सैर
वो दिन भी क्या दिन थे खैर....

वो बेंच की कील,
वो चॉक के बॉक्स....

और स्कूल लाइफ में ही होती है,
पूरी बदमाशी कै हर सौख....

वो होमवर्क ना करना फिर बहाने नये बनाना,
वो टीचर्स से रोज यूनिफार्म कै लिए दाँट खाना....

वो बोरिंग सब्जेक्ट्स से...