स्वीकार
अगर -मगर कुछ तो कहा होगा?
उसने स्वीकार कुछ तो किया होगा?
ऐसे ही कहां जुड़ते है रिश्ते।।
अगर मगर प्यार तो हुआ होगा?
उसने अंधकार में चिराग देखा होगा?
ऐसे ही कहां खिलते हैं रिश्ते।।
अगर मगर ज़ख़्म तो भरा होगा?
उसने छू कर मन को उसमे समाया होगा?
ऐसे ही कहां बनते हैं रिश्ते।।
अगर मगर त्याग तो किया होगा?
उसने सागर में मोती पिरोया होगा?
ऐसे ही कहां निभते हैं रिश्ते।।
© Pinku Dutta (Divyansh)
उसने स्वीकार कुछ तो किया होगा?
ऐसे ही कहां जुड़ते है रिश्ते।।
अगर मगर प्यार तो हुआ होगा?
उसने अंधकार में चिराग देखा होगा?
ऐसे ही कहां खिलते हैं रिश्ते।।
अगर मगर ज़ख़्म तो भरा होगा?
उसने छू कर मन को उसमे समाया होगा?
ऐसे ही कहां बनते हैं रिश्ते।।
अगर मगर त्याग तो किया होगा?
उसने सागर में मोती पिरोया होगा?
ऐसे ही कहां निभते हैं रिश्ते।।
© Pinku Dutta (Divyansh)