...

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वो एक अच्छी किताब सा था
वो एक अच्छी किताब सा था
मुझे कुछ सीखा के चला गया।
पन्ने पर लिखी बातों में
ज़िन्दगी समझा के चला गया।

जवानी के मुल्क में हसरतों के बादल थे,
सुरतों की भीड़ थी, बईमान इरादे थे
मोहब्बत की बारिश में,
भीगने की चाह थी,
और वो दमन पे बेहयाई छीटे लगा गया।
वो एक अच्छी किताब सा था
मुझे कुछ सीखा के चला गया।

ऊपरी परत पर शोख़ी, अंदर दबी रंजिशें जवान थीं,
नक्काशी गड़े शब्द और रूहानी बातें बयान थी,
समझ आयतें मैंने ज़बान रट लिया,
मैं ऊंगलियों पर करती रही हिसाब
वो हाथों से लकीरें चुरा ले गया।
वो एक अच्छी किताब सा था
मुझे कुछ सीखा के चला गया।

छांट छूट के बंधे नियमों के वो धागे
फजूल बेफ़िसुल के कायदे कवायदे
बंद आंखे मर्ज़ी जाने कौन सी खुदगर्ज़ी
बिकते हुए पयादे, रवा रिवाज़े
सच का वो बंदी बना गया
वो एक अच्छी किताब सा था
मुझे कुछ सीखा के चला गया।









© maniemo