...

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एक थी
एक थी, जो खुशी में पागल यूँही झूमती रहती,
एक थी, जो अपने ही ख्यालों में मुस्कुराये बैठती,
एक थी, जो सोते-सोते सपनो की खाई में गिर जाती,
एक थी, जो इस ढ़ाई अक्षर की पहेली को सुलझाये बैठती,
एक थी, जो खुद से ज़्यादा उसे समझने लगी थी,
गुलाब के फूल की राह में उन काटों पर भी चलने लगी थी,
बिन बोले तारीफ़ करना भी सीख लिया था उसने,
उस कठोर दिल को अपना बना रखा था उसने।

यूँही दोस्तों से ज़िंदगी के मज़े लुटा रहे थे जब,
ज़िंदगी की एक नये सफर पर पहुंचाया तुमने तब।
अनेक गानों के वो अंसुनि सच्चाई दिखने लगी थी,
उन गानों को इस दिल में तुम्हारी मुस्कान भरने लगी थी।
इस गप्पि को शांत करवाया था तुमने,
इन ख्वाबों को दिल मे सजाकर रखवाया था तुमने।
जो ज़ुबाँ कभी ना रुकती थी, तुम्हे देख कुछ कह ना पाती,
दिल के इन धड़कनों की रफ़्तार तुम्हे देख कुछ बढ़ सी जाती।
© Sia_
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