सुनो भास्कर
थक गए क्या थम जाओ
इतना काम कौन करता है
सुबह से बिन रुके पारा बढ़ा रहे हो
अब तो ढलना बनता है ।
कौन नज़र डाले तुम पर
अपने रूप पर इतराते हो
साँझ ढले ताक लेते हैं तुमको
फिर न...
इतना काम कौन करता है
सुबह से बिन रुके पारा बढ़ा रहे हो
अब तो ढलना बनता है ।
कौन नज़र डाले तुम पर
अपने रूप पर इतराते हो
साँझ ढले ताक लेते हैं तुमको
फिर न...