...

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ये शाम तुम्हारे नाम प्रिय
अंबर के लाखों तारों में
एक ही होता चांद प्रिय
कस्तूरी मृग में ही होता
ढ़ूढ़ता वो सरे आम प्रिय।
खुशबू से महका उपवन जब
गुलकंद बना क्या शान प्रिय
सूरज सा तेज निराला बन
किया जग रौशन नाम प्रिय।
लिखता था कलम बचाकर मैं
न हो जाऊं बदनाम प्रिय
दुनिया से अब छुपना क्या
ये शाम तुम्हारे नाम प्रिय।