...

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बुढ़ापे का ससुराल
पतिदेव ने मुझे यहां ब्याह कर लाया,
और पिता ने इसे ही मेरा ससुराल बताया,
डोली में बैठ सजधज कर आई यहां,
सोचा अब अर्थी पर ही वापस जाऊंगी,
पतिदेव संग सपने सजाए मैंने रंग बिरंगे
सोचा इसी कोने में हम बूढ़ापा बिताएंगे,
पर बच्चों के इस आधुनिक सोच ने,
सपनों को यूं बिखेरा तेज़ी से
मुझे क्या पता था ये सब कि ,
जब झुरियों का श्रृंगार चढ़ेगा ,
तो यह वृद्ध आश्रम की राह बताएंगे,
जिस घर से अर्थी निकलने की बात थी,
वहां से मरा हुआ दिल लेकर बाहर जाऊंगी,
इतने प्यार से तो बापू ने भी ना भेजा था,
जितने प्यार से बच्चों ने वृद्धाश्रम भेजा हमें,
कहा कि आपको यहीं रहना है हमेशा,
जब तक आप अपनी सांसे संभाल पाएंगे,
उस दिन मेरे बच्चों ने क्या खूब विदा किया,
उस दुख से मैं आज तक ना उभर पाई,
संग दहेज में मुझे ढेर सारा दुख
भी दिया ,
और भेज दिया मुझे मेरे बुढ़ापे के ससुराल में
जहां अब मेरी अर्थी सजेगी,
होगी आखरी विदाई भी यहीं से
और कहा धीरे धीरे दिल लगा लेना मां यहीं,
क्योंकि नहीं लेने आएंगे हम तुम्हें यहां से कभी ।
मान लेना तुम इसे ही अपना घर
और सोचना कि नहीं थे तुम्हारे जीवन में हम कभी
बस था हमेशा से ये वृद्धाश्रम ,
जहां आपको आना ही था आज नही तो कल ।
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