...

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मैं समझा था तुम हो.....
मैं समझा मैं तुम्हें सब बता सकता हूँ !
फिर समझा कुछ परदे सबसे करने पड़ते हैं !
अपनों से भी हमें पहरे रखने पड़ते हैं !
फिर वजह पूछी जाती हैं और कुछ इलज़ाम लगा दिए जाते हैं !
खुद की गलतियों पर पर्दा डाल दूसरों के ज़ख्म कुरेदे जाते हैं !
फिर झूठ के कटघरे में खड़ा कर सजा भी सुनाई जाती हैं !
हमे उम्रकैद और उन्हें आज़ादी दी जाती हैं !
उस भूल भुलैया में हम फंसते जाते हैं !
फिर एक चीख निकलती हैं !
और सुनाई किसी को भी नहीं देती !
यूँ खुद में ही ख़तम हो जाती हैं सचाई उस झूठी कहानी में दब कर !
फिर बस सांसे बचती हैं !
फिर जिस्मों से यूँ खेला जाता हैं और नाम प्यार का दे दिया जाता हैं !
यूँही सच्ची मोहब्बत का नकाब ओढ़ अक्सर ही दिलो से खेला जाता हैं!

© aaru