...

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याद रख!
अगर तुझे लगता है
तू अंधेरे में ढलती शाम है
तो क्या? याद रख!
हर शाम उजाले में बदलती है
इक नई सुबह के आने से।
ये सोच कर बस तू अपनी नज़रों को
आगे की तरफ जमाए जा
मुश्किल तो सारी ही मंजिलें हैं
तय करते हैं उसको हिम्मत से,
मत डर तू बाहर की आंधी से
अपने अंदर के दिये जलाए जा।

तुझ को लगता है कि तू इक ज़र्रा है
इस बात पर तो तू खुश हो जा
क्यूंकि,
ज़र्रा जितना रगड़ता जाएगा
कीमती मोती फिर वह बनता जाएगा।
अपने अंदर के तूफ़ान को
सयाही के समंदर में डूबो कर,
इस कोरे कागज़ की दुनियां में
दिल खोल कर तू फैलाए जा।
मत डर तू बाहर की आंधी से
अपने अंदर के दिये जलाए जा।

खुद आगे बढ़ कर ,डट कर ,जम कर
लोगों के दिल में आग लगाए जा ,
मंज़िल पे बढ़ने के साथ साथ
राह के पत्थर भी तू हटाए जा,
अपने अंदर की दुनिया में कूद कर
अपने आप को जगाए जा।

दुनिया के अंधेरे में
तलाश के ज़िन्दगी के राजों को,
मंज़िल पे आगे बढ़ते बढ़ते
लोगों को भी कुछ समझाए जा ।
क्यू रोकेगा तू अपने इस सफ़र को
चलते चलते ही इस जहां से
कुछ अपना आप मनवाए जा।

Fayza
© fayza kamal