याद रख!
अगर तुझे लगता है
तू अंधेरे में ढलती शाम है
तो क्या? याद रख!
हर शाम उजाले में बदलती है
इक नई सुबह के आने से।
ये सोच कर बस तू अपनी नज़रों को
आगे की तरफ जमाए जा
मुश्किल तो सारी ही मंजिलें हैं
तय करते हैं उसको हिम्मत से,
मत डर तू बाहर की आंधी से
अपने अंदर के दिये जलाए जा।
तुझ को लगता है कि तू इक ज़र्रा है
इस बात पर तो तू खुश हो जा
क्यूंकि,
ज़र्रा जितना रगड़ता...
तू अंधेरे में ढलती शाम है
तो क्या? याद रख!
हर शाम उजाले में बदलती है
इक नई सुबह के आने से।
ये सोच कर बस तू अपनी नज़रों को
आगे की तरफ जमाए जा
मुश्किल तो सारी ही मंजिलें हैं
तय करते हैं उसको हिम्मत से,
मत डर तू बाहर की आंधी से
अपने अंदर के दिये जलाए जा।
तुझ को लगता है कि तू इक ज़र्रा है
इस बात पर तो तू खुश हो जा
क्यूंकि,
ज़र्रा जितना रगड़ता...