...

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डगर पर डग भरते हैं ।
डगर पर डग भरते हैं, इक रोज़ मंजिल आएगी।
ग़मों की आंधी गुज़रेगी, खुशियों की बारिश आएगी।
नहीं कोई राह आसान है यहाँ, कहीं न कहीं तो मिल जाएगी।
डगर पर डग भरते हैं, इक रोज़ मंजिल आएगी।
उम्मीदों का दामन थामें रखा, धैर्य का बांँध बांधे रखा।
कुछ वक्त ठहरा रहा, कुछ ज़ख़्म गहरा रहा।
डगर पर डग भरते हैं, इक रोज़ मंजिल आएगी।
सबकी सोच कुछ जुदा रही है, हमारी भी कुछ अलग रही।
फिर भी दुनिया की मानी, हम इतने भी नहीं रहें मनमानी।
डगर पर डग भरते हैं, इक रोज़ मंजिल आएगी।
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