...

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बेटा होने का इंतजार
बेटा होने का इंतजार में,
पांच बेटियां पैदा हो गई ,
अब भी आस है छठी बार में बेटा हो जाए,
दुर्भाग्यवश छठी बार में जुड़वाँ बेटी हो गई।
बेटियां की संख्या अब सात हो गई।
पता चलते ही कि बेटी हुई है मातम सा छा गया है।
माँ उदास है, सास मुँह फुलाये हुए है।
भगवान को कोस रही है, भीतर ही भीतर रो रही है।
सभी अपने पराये कह रहे,
आह! बेचारी का भाग्य ख़राब है।
कह रहे अब इसे ही बेटा मानो।
कोई कह रहा अगले बार बेटा जरूर होगा,
भगवान परीक्षा ले रहा है,दंड दे रहा है।
मैं पूछता हुँ इन सब में भगवान का क्या दोष है?
उस नादान बच्ची का क्या दोष है?
जिसके पैदा होते ही मातम छा गया है?
उस माँ का क्या दोष है जो खुद को अभागा कह रही है?
आसपास ख़डी सभी स्त्रियां कह रही हैं
भगवान को ऐसा दंड नहीं देना चाहिए।
इन सबके बीच बच्ची का पिता मौन है,
आसपास खडे सभी पुरुष मौन हैं।
लड़के या लड़की का जन्म लेना
एक पुरुष का गुणसूत्र तय करता है।
पर यहाँ कोई किसी को क्यूँ कोसे?
ज़ब बेटों से कन्धा से कन्धा मिलाकर बेटियां चल रही हैं,
तो एक बेटे के जन्म के लिए
कई बेटियां के जन्म के बारे में क्यूँ कोसा जाता है
© kajal