क्या ये तुम हो ??
अपनी खुशियों को जो यूँ ठुकराये घूमते हो
हमे भी तो बताओ क्या बोझ लिए रहते हो ।।
पत्थर तक रिस जाते है पानी के बहाव में
तुम तो फिर भी इंसान हो इस बदनाम बाजार में ।।
रिसे पत्थर की कीमत बढ़ती है उस घाव से
अनमोल तो तुम थे, निखर गए और उस लगाव से ।।
अब क्यों अँधेरे में गुमनाम खुद को खो रहे हो
उजाला है सामने अब तो अपनी आँखें खोल लो ।।
दस्तूर है कुछ घाव लगते और खुद भरते हैं
बच्चे भी तो गिरने के...
हमे भी तो बताओ क्या बोझ लिए रहते हो ।।
पत्थर तक रिस जाते है पानी के बहाव में
तुम तो फिर भी इंसान हो इस बदनाम बाजार में ।।
रिसे पत्थर की कीमत बढ़ती है उस घाव से
अनमोल तो तुम थे, निखर गए और उस लगाव से ।।
अब क्यों अँधेरे में गुमनाम खुद को खो रहे हो
उजाला है सामने अब तो अपनी आँखें खोल लो ।।
दस्तूर है कुछ घाव लगते और खुद भरते हैं
बच्चे भी तो गिरने के...