तुम्हारा,खुद खोता रहा
इक तिरी इश्क़ की राह
मैं टूट यूँ संजोता रहा
न हंस सका जग में हक़ से
हक़ से न जग में रोता रहा
पाया क्या, क्या ख़बर
क्या फर्क,जो मैं खोता रहा ...
मैं टूट यूँ संजोता रहा
न हंस सका जग में हक़ से
हक़ से न जग में रोता रहा
पाया क्या, क्या ख़बर
क्या फर्क,जो मैं खोता रहा ...