...

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लालसा...
गवां बैठे अस्तित्व अपना,दुख में सुख की चाह लिए,
भटक रहा मन माया वन में, वीराने में उल्लास लिए,
शेष नही जीवन मे कुछ,श्वास की डोरी छूट रही,
पर मन चंचल है माने न,भटके आशा की डोर लिए।

पराजय का अजेय रण ,कायरता में उत्साह लिए
जीत खोजते विवश हुए,बुझती लौ में अंगार लिए,
टूट रहा मन में घमंड,ज्वाला भी द्वेष की बुझ रही,
पर खो रहा उपवन में भंवरा,कांटो में महक की चाह लिए।

ख्वाइश की फरमाइश पर,भूले सपनो में मीठी याद लिए,
घिरते जाते अंधेरों में,विपदा में सुकून की फरियाद लिए,
देख रहा जलता जगत को,मरघट पर सब हो जाता खत्म,
पर लालच भंवर में फंसा जीव,भटके अभिलाषा के दीप लिए।
© pagal_pathik