चैन की नींद : मच्छरदानी
टूट हुआ था बदन दिन की थकन से,
नींद नहीं बेहोशी भर आई थी आँखों में,
आज यूँ ही आया मन में विचार एकदम,
सो जाए अपने चारों ओर लपेटकर कंबल,
जो ही मूँदा हमनें आँखों को अपनी ज़रा,
एक मच्छर कान के पास गुनगुनाने लगा,
अचानक सुनाई देते गाने के उस शोर से,
बदली हमनें भी करवट शोर को दूर...
नींद नहीं बेहोशी भर आई थी आँखों में,
आज यूँ ही आया मन में विचार एकदम,
सो जाए अपने चारों ओर लपेटकर कंबल,
जो ही मूँदा हमनें आँखों को अपनी ज़रा,
एक मच्छर कान के पास गुनगुनाने लगा,
अचानक सुनाई देते गाने के उस शोर से,
बदली हमनें भी करवट शोर को दूर...