jai Shree Madhav
@mywriting
तुझे देव कहूँ, सखा या फिर कान्हा सबका
कोई रूप हो तेरा, अक्स मेरा रम सा गया।।
कहाँ खोजू, कहाँ ढूँढू, तू सूक्ष्म, मैं अज्ञानी
तेरे दरस बिन, ये जीवन फिर से व्यर्थ यो हो गया।।
मैं पूजू तुझे, मानू भी, पर प्रेम तो तेरा बट गया
सूरत बिन देखे, नाम से तेरे हर जीव यहा तर गया।।
मुरली ना सुनी, ना धुन, ना संगीत तेरा मैं जानू
तेरी उंगलियों का नचना, कि ञिलोक सुर से गूँज़ गया।।
ये नहीं, पुंज ने तेरी छुआ नहीं गोपियों, ग्वालो को
राधा का, मीरा का, रुक्मिणी का भी तो तू हो गया।।
झूठ कह दो, मिलोगे, भ्रम को ही जीवन बस मानू
तेरी आस में बारंबार मरू में मरु मैं,
काल चक्र, फिर में मूर्ख, इसे समझ गया।।
तुझे देव कहूँ, सखा या फिर कान्हा सबका
कोई रूप हो तेरा, अक्स मेरा रम सा गया।।
कहाँ खोजू, कहाँ ढूँढू, तू सूक्ष्म, मैं अज्ञानी
तेरे दरस बिन, ये जीवन फिर से व्यर्थ यो हो गया।।
मैं पूजू तुझे, मानू भी, पर प्रेम तो तेरा बट गया
सूरत बिन देखे, नाम से तेरे हर जीव यहा तर गया।।
मुरली ना सुनी, ना धुन, ना संगीत तेरा मैं जानू
तेरी उंगलियों का नचना, कि ञिलोक सुर से गूँज़ गया।।
ये नहीं, पुंज ने तेरी छुआ नहीं गोपियों, ग्वालो को
राधा का, मीरा का, रुक्मिणी का भी तो तू हो गया।।
झूठ कह दो, मिलोगे, भ्रम को ही जीवन बस मानू
तेरी आस में बारंबार मरू में मरु मैं,
काल चक्र, फिर में मूर्ख, इसे समझ गया।।