...

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मेरा सारा इश्क बेकार हो गया
ऐसा बिछड़ा मुझसे वो
मेरा जीना ही दुश्वार हो गया
उसे पाने की उम्मीद में
मेरा सारा इश्क बेकार हो गया

वो मेरा यार जो था कभी
वो किसी और का प्यार हो गया
उसके मृग्नयनों का जोड़ा
किसी गैर से दो चार हो गया

मेरी महोब्बत का कलाम
जो पढ़ता था मैं महफिल में
किसी और के रंग में रंगकर अब
देखो दागदार हो गया

पर पहले से कुछ ज्यादा मेरे
शेर है शहर की चर्चा में
ऐसा तो नहीं था " दीप "
कैसा ये किरदार हो गया

जगह जगह पर खड़े है ताजीर
वो कीमती कालीन लेने को
बिछा दिया उसने खुद को ऐसे
उसका दिल बाजार हो गया

कल तक तो जो लिखता था
मेरी नज्मों को बड़े फक्र से
अब उसकी तरफ है झुक गया
मेरा दुश्मन वो अखबार हो गया

कोई हो तो लाख खफा हो जाये
हर दफा ही बस नफा हो जाये
कुछ तो रहम कर दिल पर भी
ये तेरा कैसा कारोबार हो गया

ऐसा बिछड़ा मुझसे वो
मेरा जीना ही दुश्वार हो गया
उसे पाने की उम्मीद में
मेरा सारा इश्क बेकार हो गया






© दीप