...

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रूहदारी
जिस्म अजनबी है और रूह जुड़ी सी लगती है
तेरी रूहदारी मुझे ख्वाब सी लगती है
दूर हो के भी तुझसे दूरी नहीं कोई
तु गीता और तुही कुरान सी लगती है
मिर्ज़ा गालिब सब फिके से लगे
तेरी हर बात नज़्म नज़्म सी लगती है
तेरी याद मे गुजारी है हिज्र की रातें
तेरी रूह मुझे हर पल बेचैन् सी लगती है
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