...

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थोथा चना बाजे घाना
आख़िर मिलता क्या है
लगाई बुझाई करने से
शायद एक सुकून
अपने ही कुंठित मन से
विचारों के उलझे जाल में
भ्रमित दिमाग की उपज
जैसे थोथा चना बाजे घाना
झोपडी उसकी रोशन क्यूँ
और महल मेरा जला क्यूँ
वक़्त की अजब है मार
और आवाज़ दूर कहीं दफ़न
© "the dust"