...

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एक सुबह ऐसी भी
एक सुबह ऐसी भी ,
जिसका सोचा ना था
क्या हुआ ऐसा
साथ होते हुए भी सन्नाटा था
जहन मैं कई
प्रश्नो की चुभन
ये तो बताओ मेरी गलती क्या थी ?
उसकी नजरे उठते ही साला सारा मंझरा समझ आगया
उसको जाना था मुझे छोड़ कर ,
बस यही बात थी
उसके साए ने भी एक बार पलट कर नहीं देखा ।


© प्राची राघव