...

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मेरी दिल्ली, मेरी शान
बहुत बार उजड़ी, फिर बसी है ये दिल्ली
इसको जमने में यारों ज़माने लगे हैं !
आओ फ़िर से जगाएं वो जज़्बा-ए-मोहब्बत
जिसको भुलाने दीवाने लगे हैं !
भरोसा नहीं यहाँ किसी को किसी पे ;
मौत का सामां भी वो अब मंगाने लगे हैं !
हर शख़्स को यहां,वहां जाने की है जल्दी
ख़ुदा के जहां शामियाने लगे हैं !
बहुत बार उजड़ी,फिर बसी है ये दिल्ली
इसको जमने में यारों ज़माने लगे हैं !
आओ फ़िर से जगाएं वो जज़्बा-ए-मोहब्बत
जिसको भुलाने दीवाने लगे हैं !!

© Brijendra Kanojia