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अजीब😏
अजीब शख़्स था हंसता था न ही रोता था
वो दिन को जागता रातों को ख़ूब सोता था
थी जाने कैसे हर इक बात ही अलग उसकी
जो होता भीड़ में बैठा नुमायां होता था
के उसकी रोशन सी ख़्वाब थीं आंखें
जो देखता उसे रहके उसी का होता था
न करता बातें किसी से भी इतनी ज़्यादा था
नज़र को सिर्फ़ उठा कर ख़मोश होता था
© Arshi zaib
वो दिन को जागता रातों को ख़ूब सोता था
थी जाने कैसे हर इक बात ही अलग उसकी
जो होता भीड़ में बैठा नुमायां होता था
के उसकी रोशन सी ख़्वाब थीं आंखें
जो देखता उसे रहके उसी का होता था
न करता बातें किसी से भी इतनी ज़्यादा था
नज़र को सिर्फ़ उठा कर ख़मोश होता था
© Arshi zaib
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