बदलते पहलू
जुस्तजू जीने की है ,
लेकिन सिसकते देख रहीं हूँ
हवा तो मयस्सर है
मगर मरने की तड़प देख रहीं हूँ
खुली फिजां है चारो तरफ़
मगर एक घुटन देख रहीं हूँ
आबाद है जहां सारा
मगर बर्बाद रिश्ते देख रहीं हूँ
मुक्कमल हैं किस्से सारे
फिर भी पन्ने बिखरते देख रहीं हूँ
चोट देने को सारे तैयार हैं यहाँ
मैं फिर भी 'शिफा' देख रहीं हूँ
© Shikha_
लेकिन सिसकते देख रहीं हूँ
हवा तो मयस्सर है
मगर मरने की तड़प देख रहीं हूँ
खुली फिजां है चारो तरफ़
मगर एक घुटन देख रहीं हूँ
आबाद है जहां सारा
मगर बर्बाद रिश्ते देख रहीं हूँ
मुक्कमल हैं किस्से सारे
फिर भी पन्ने बिखरते देख रहीं हूँ
चोट देने को सारे तैयार हैं यहाँ
मैं फिर भी 'शिफा' देख रहीं हूँ
© Shikha_