गज़ल- ख़ुद ही ख़ुद को उजाड़ बैठा हूं।
उससे करके मैं प्यार बैठा हूं।
ख़ुद ही ख़ुदको उजाड़ बैठा हूं।
जब भी मौका मिले आजमा लो मुझे
यारों का ऐसा मैं यार बैठा हूं।
उतारे से भी अब वो उतरता नहीं है
जानें करके कैसा खुमार बैठा हूं।
मुश्किलें आओ मेरी मुझे परेशां तो करो
तुमसे लड़ने को मैं भी तैयार बैठा हूं।
मेरी सांसों तुम बची सांसों को गिनो
मैं तो ज़िंदगी अपनी गुज़ार बैठा हूं।
© वरदान
ख़ुद ही ख़ुदको उजाड़ बैठा हूं।
जब भी मौका मिले आजमा लो मुझे
यारों का ऐसा मैं यार बैठा हूं।
उतारे से भी अब वो उतरता नहीं है
जानें करके कैसा खुमार बैठा हूं।
मुश्किलें आओ मेरी मुझे परेशां तो करो
तुमसे लड़ने को मैं भी तैयार बैठा हूं।
मेरी सांसों तुम बची सांसों को गिनो
मैं तो ज़िंदगी अपनी गुज़ार बैठा हूं।
© वरदान