...

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मेरी प्यारी बहेणे...
मेरी सब बहेने,
चाय की तरह कडक है,
पकपक कर स्वडिस्ट हो गयी है,
जिंदगी जिने मे माहीर हो गयी है.

दूध बनकर ससुराल आई थी,
अद्रक की तरह कुटी गयी,
वो अपनी चीनी मिळती गयी,
और तझुरबा के आंच पर,
खुद्द को पंक्ती रही.

और आज देखो सब,
मजे से घर चलती है,
और आपण भी दिल बेहलाती है,
छियलीस के पार होकर भी,
छबीस सी नजर आता हैं.

कोई अब दूध स उफणता नाही,
किसीं का हात अब जलता नही,
सब समेट ललेती ही,
खुद्द को सहेज लेती है,
ये उमर दर्ज नही होती,
उमर को दराज मे रख देती है.

इंके बच्चे बडे हो रहे है,
और ये इलायचीसी म्हेक रही है,
बुड्डे हो इंके दुष्मन ,
ये रोज नये काम कर रही है,
इंका नशा कभी कमी न होता,
कुलहड हो या ओंन चायना,
इन्हे कभी कोई गम न होता.

ये तो अद्रक से,
भी दोस्ती निभाती है,
ऊसे अपने अंदर समा,
उसका भी स्वाद बढाती है,
चाय की माफिक,
सबकी पसंद केहलाती है.

- tejas