ऐ ज़िंदगी...
ऐ ज़िंदगी.. अब तो सूरत बदल
बदसूरत रही है अंधेरों में अब तक
उजालों की राहों में अब तो निकल
मुश्किल बहुत है
स्याह कालिख में जीना
खूबसूरती के मायने कभी तो सिखाती चल
क्या थकती नहीं तू
परेशानियों के बोझ तले रौंद के ख़ुद ही को
कभी...
बदसूरत रही है अंधेरों में अब तक
उजालों की राहों में अब तो निकल
मुश्किल बहुत है
स्याह कालिख में जीना
खूबसूरती के मायने कभी तो सिखाती चल
क्या थकती नहीं तू
परेशानियों के बोझ तले रौंद के ख़ुद ही को
कभी...