...

2 views

मैं इंसान
मैं इंसान
न मैं हिंदू न मैं मुस्लिम
मैं अदना-सा एक इंसान
मित्र प्रेम भाव को ह्रदय रखता, काम से रखना अपना काम।।

जात-पात न मेरी पूछो
उससे मुझको है क्या काम
ज्ञान विज्ञान से सीखता जाता, कुछ अनुभव भी देता मुझको ज्ञान।।

कर्मठ हूं मैं कर्म ही करता
परिणाम न होता मेरे हाथ
जो मिल जाता रख लेता हूं, मैं परिवार का रखता अपने ध्यान।।

मान-सम्मान की चाह भी होती
हो थोड़ा धन भी मेरे पास
कर्म-धर्म भी कर लेता हूं, सदा जिम्मेदारियों निभाती मेरा साथ।।

मोह-माया मुझे खूब लुभाती
रोज सपने दिखाती लुभावने खास
काम-क्रोध भी मेरे हृदय जगते, कुछ अनजाने में हो जाते पाप।।

ईर्ष्या-द्वेष भी कभी पनपते
होती शांति-समृद्धि मुझको आश
होता आगे निकलने की होड़ में शामिल, क्यूं भूल जाता हूं कितना खास।।

स्वार्थ में भूलता संस्कृति को
डर का भी होता मुझमें वास
धर्म से यदि मैं जुड़ा हूं रहता, मुझे ईश्वर का भी मिलता आशीर्वाद।।

सदा करता रहा मैं तेरा-मेरा
क्यूं स्वयं का रहा न मुझको भान
सुख-दुःख में सदा उलझा रहता, थोड़ा परिवार का मिलता मुझको साथ।।

बस ईश्वर का नाम न जपता
वक्त न उसका मेरे पास
आत्मा-परमात्मा का मिलन कराता, कल्याण के मेरे है जो द्वार।।