ज़िंदगी
ऐ ज़िंदगी तु ऐसी क्यों है,
जैसा सोचा था वैसी क्यों नहीं,
सोचा कुछ, और हुआ कुछ है,
बता ज़िंदगी तु ऐसी क्यों है...?
जिस उम्र को जी भर जीने की चाह थी,
उससे अब नफ़रत सी हो गई है,
मन को मारते-मारते,
न जाने कब ज़िंदगी मायूस-सी हो गई है।
मेरी सारी ख्वाहिशें,मेरे सारे सपने,
सब कुछ अधूरे ही रह गए,
न जाने कब सब्र...