...

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कुछ अनकहे से बोल...

लिखनी थी बातें दिल की मगर
पन्ने ही जैसे कहीं खो से गए हैं
दिन बीतते हैं अब खामोशी में ही
आज इतने अकेले हम हो से गए हैं

ये आंखें जिन्हें कभी देखा करती थी
वो ख्वाब किसी नींद में सो से गए हैं
खिलखिलाती हंसी कहीं पीछे छूट गई
आज अंदर ही अंदर हम रो से गए हैं

आस कोई जैसे अब बची ही नहीं हैं
इस चेहरे को आंसू ही धो से गए हैं
ख्यालों की...