अपराध
#अपराध #ashishsophatquotes
मन मौन व्रत कर अपराध करता है
किस भांति देखो आघात करता है
व्यंग पर गंभीरता का प्रहार करता है
जब चुप रहना हो इसहार करता है
कोई नई समझे इसकी आपाधापी को
ज़िंदगी तो बेताब है ज़िंदादिली को
पर ये फिर मासूम अपराध करता है
मन मौन व्रत करअपराध करता है
मन मौन व्रत कर अपराध करता है
किस भांति देखो आघात करता है
व्यंग पर गंभीरता का प्रहार करता है
जब चुप रहना हो इसहार करता है
कोई नई समझे इसकी आपाधापी को
ज़िंदगी तो बेताब है ज़िंदादिली को
पर ये फिर मासूम अपराध करता है
मन मौन व्रत करअपराध करता है