...

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तेरे होंठो पर सबनम की बूंदे
तेरे होंठो पर सबनम की बूंदे।
बिखरी है खुशी- खुशी लबों को चूमकर।
आज मजे में वो, पत्ते पर बिखरी थीं।
अब छा गई तेरे होठों पर सरक कर।


खुशनसीब भी है, जो तेरे हुस्न पर है।
टपकती है जैसे पत्ते पर गिर रही हो।
लालिमा रंगों में पिघलकर।
चिपक जाती है मदहोश होकर।


बिखरी है पतली धारा में।
शीतल सा पानी।
रुक जाती है जैसे पेड़ों से टकराकर आई हो।
लेकर मदहोश जवानी।


लगता है मुझे इश्क है तुझसे।
तभी तो वो तेरे होंठो को छोड़कर जाती नहीं।
सुरूर है उन पर तेरी अदाएं देखकर।
वो आहिस्ता से मजा चख रही है दाने होकर।


सबनम की बूंदे है जो, मगर तू प्यारी लग रही है।
जैसे गुलाबो की पंखुड़ियों पर ओस चिपक जाती हैं।
वही हो तन्हा तस्वीर, जो गुमसुम हो।
जब सपने में आती है, तब! दिखाई पड़ती है।।
© All Manoj Kumar