...

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ये देश हमारे अपने है,
हे ऊपर वाले,निचे के रखवाले ने तो संकट में हमको अपना असली रूप दिखा दिया|

क्या तू भी हमसे अपना मुख मोड़ लिया? कभी आंधी-तूफ़ान,जोरों की बारिश तो कभी कड़कती धुप, औरऊपर से ये महामारी |

बेबस असहाय मजबूर हूँ,
प्रभु समझो हमारी लाचारी |

दिन - दुखिया मज़दूर हूँ,
घर से अपने दूर हूँ,|

मिला ना हमको कोई सहाय,
पथ पर चलने को मजबूर हूँ |

कई घर बनाये हमने,
ना जाने कितनो के सपने सवारे हमने,
फिर भी ना जाने क्यों आज हम पैदल चलने को मजबूर हूँ|

सोचा ये देश हमारे अपने है,
देश में रहने वाले इन्शान भी सब अपने है इस भर्म में रहकर , हम तो अपनो ही से दूर हूँ |
देश जुंझ रहे है,
आज कोरोना जैसी महामारी,
सरकार कर रहे है ,
नेता की खरीद दारी,
हम राह में यहाँ ,
दाने दाने के मोहताज़ है,
वहां वो दुलाह बनकर ,
घोड़ी चढ़ने को तैयार है |

आते रहते है,वो बन-ठान कर
टीवी के सामने,
एयर कंडीशन में,
पढ़ा जाते है तकिया कलाम
बड़े ही इमोशन में,
दिल को हमारे वो
गुद-गुदा जाते है|

हमारे दशा पर वो,
पिट पीछे मुश्कुराते है|

कहते है,भाई बना के
इनको बेबकुफ़,
हमे तो , मजा आ जाते है|