...

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पाकिजा़ इश्क
करीब आ इक गज़ल कहनी है
तिरे हुस्न की तारिफ़ करनी है....

युँ तो है चेहरे हसीं बहुत मगर
नही कोई भी तुम्हारा सानी है....

तुम मिले हो हमे बडे नसीबों से
हमपर किस्मत की मेहरबानी है....

डुब जाना है हमे तुम्हारे इश्क मे
अब के दरिया मे जरा कम पानी है....

मुहब्बत नाम है पाकिजा़ रिश्ते का
रस्म ये भी तो हमे निभानी है....
© संदीप देशमुख