...

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ज़रूरी
ज़रूरी नहीं हर जज़्बे को लफ़्ज़ों का साथ मिले,
ज़रूरी नहीं हर ख़ामोशी को कोई बात मिले.

किया इंतज़ार जाग कर उस नज्म-ए-सहर का,
ज़रूरी नहीं हर सितारे को उसकी रात मिले.

जैसे ज़रूरी नहीं सभी के पास हर शय का मिलना,
ज़रूरी नहीं हर शय को कोई कायनात मिले.

मुश्किलों से कभी ज़िन्दगी जीने में आता है मज़ा,
ज़रूरी नहीं हर मुश्किल से हमें नजात मिले.

देखा है उठे हाथों को, दुआ में, मदद में या ग़म में,
ज़रूरी नहीं हर उठते हाथों को कोई हाथ मिले.
© अंकित प्रियदर्शी 'ज़र्फ़'

जज़्बे - भाव, भावना (emotion, feeling)
नज्म ए सहर - सुबह का तारा, शुक्र ग्रह (morning star, Venus)
शय - वस्तु, चीज़ (thing)
कायनात - दुनिया, विश्व (world)
नजात - मुक्ति, छुटकारा (freed, liberated)
एक और नज़्म की पेशकश......
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