जीवन का पाठ
देख कर उस परिंदे को
मन मेरा भर आया था
छोटा सा था वो, पर उसने
बाज़ से सर टकराया था
लडते -लडते मुश्किल से
अपनी जान बचाया था
लहु लुहान हो गिरते पडते
ज़मीन से आ टकराया था
उडने कि चाहत करता, पर
न ज़रा भी हिल पाया था
पंख उसके टूट गये थे
फिर भी ना घबराया था
थोडे़ आँसू आँखो मे थे
पर इक बूँद ना बहाया था
खिसक खिसक कर खुद को वो
पेड़ के नीचे लाया था
थोडा़ पानी पास मेरे था
जो मैंने पिलाया था
मुस्कुरा कर उसने
शुक्रिया में सर हिलाया था
अनकही इस दास्ताँ ने मुझको
जीवन का पाठ पढा़या था
मझधार में हो जीवन नैया जब
किनारा संर्घष ने दिलाया था...
© ScorP11
मन मेरा भर आया था
छोटा सा था वो, पर उसने
बाज़ से सर टकराया था
लडते -लडते मुश्किल से
अपनी जान बचाया था
लहु लुहान हो गिरते पडते
ज़मीन से आ टकराया था
उडने कि चाहत करता, पर
न ज़रा भी हिल पाया था
पंख उसके टूट गये थे
फिर भी ना घबराया था
थोडे़ आँसू आँखो मे थे
पर इक बूँद ना बहाया था
खिसक खिसक कर खुद को वो
पेड़ के नीचे लाया था
थोडा़ पानी पास मेरे था
जो मैंने पिलाया था
मुस्कुरा कर उसने
शुक्रिया में सर हिलाया था
अनकही इस दास्ताँ ने मुझको
जीवन का पाठ पढा़या था
मझधार में हो जीवन नैया जब
किनारा संर्घष ने दिलाया था...
© ScorP11