...

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जँचता नहीं
वैसे तो लंबी कविता है,
लेकिन साझा करने को ये चार पंक्तियाँ ही काफ़ी लगीं

शायद दिन के घण्टे कुछ लंबे हो गए हैं,
वक़्त भी अब मेरा, कटता नहीं है।
पहले हर रंग पहनती थी बदन पर अपने,
अब लिबास कोई भी हो, मुझ पर जँचता नहीं है।।

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