...

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रद्दी के कागजों में मेरे खत।
जिंदगी भर मोहब्बत एक सी रहे मुमकिन नहीं,
रिश्ता तो बना रहे मगर यह भी तो नामुमकिन नहीं,
तुम एक तरफा हो के मगर कब तक निभाते रहोगे।
• उसने रद्दी के कागजों में मेरे खत रख दिए,
तुम क्या कहोगे।।
खुदा थे कभी, अब मुझे खुद्दार कहने लगे हैं,
बहुत दिनों से मुझसे कटे-कटे रहने लगे हैं,
खुद ही कहो ऐसे सीतम कब तक सहोगे।
• उसने रद्दी के कागजों में मेरे खत रख दिए,
तुम क्या कहोगे।।
बिन खता हाथ जोड़े पाओ पड़ा, रिश्ता निभाने को,
वो तयार नहीं है एक कदम भी आगे बड़ाने को।
धर्मेंद्र तुम अकेले भावनाओं में कब तक बहोगे।
• उसने रद्दी के कागजों में मेरे खत रख दिए,
तुम क्या कहोगे।।
© Dharminder Dhiman